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8) वो ट्रैन का हादसा ( यादों के झरोके से )




शीर्षक = वो ट्रैन का हादसा



एक बार फिर आप सब के समक्ष हाजिर हूँ, अपनी यादों का पिटारा लेकर, वैसे तो इस पिटारे में हज़ारो यादें रखी हुयी है , लेकिन कभी कभी इंसान की जिंदगी में कुछ ऐसे पल आते है, जो ताउम्र के लिए एक ऐसी याद बन जाते है, जिन्हे भुला पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन होता है, अब वो पल चाहे ख़ुशी का हो या गम का बस उसकी छाप दिल पर एक ना मिट पाने वाली मोहर की मानिंद सी छप जाती है 


जिसे समय  की बहती धारा भी  मिटा नही पाती, तो आइये चलते है  उस गुज़रे पल की याद को आप सब के साथ साँझा करने

मैं बताता चलू  इस याद गार लम्हें को मैं बिलकुल जीना नही चाहता , बस यादों के झरोके में लिखने का मौका मिल रहा है  तो सोचा आप सब के सामने उस घटना का वर्णन करता चलू 


और साथ ही साथ  एक बार फिर अपने रब का शुक्रिया अदा करता चलू , जिसने उस हादसे में मुझे ही नही बल्कि मेरी माँ और अन्य यात्रियों को भी बहिफाज़त अपने अपने घर पंहुचा दिया था 

उस ट्रैन में बैठे यात्री तो बच गए थे  लेकिन उन सब ने कुछ ऐसा देखा जिसे देख हम सब ही के रोंगटे खड़े हो गए थे 


तो आइये चलते है  उस घटना को मेरी ज़ुबानी सुनने के लिए 


ये बात है  2011 की, जब मैं कक्षा 9 में पढ़ता था , मुझे टेलीवीज़न देखने का बचपन से ही बहुत शोक था, लेकिन अब बिलकुल नही क्यूंकि नजदीक से टेलीविज़न देखने के मेरे शोक ने खुदा द्वारा इनायत की गयी  मेरी दूर की देखने की निगाह कमज़ोर करदी, जिसके चलते अब मुझे मजबूरन  चश्मे का सहारा लेना पड़ा, मुझे याद है मेरे घरवाले , मेरे बड़े मुझे अकसर मना करते थे  इस तरह नजदीक से टीवी देखने को, लेकिन मैं नासमझ, नादानी में उनकी दी गयी सलाह को इग्नोर कर देता


लेकिन आज जाकर समझ आया  की उनकी कही एक एक बात सही थी , अब जब सुबह उठते ही आँखों पर चश्मे का पहरा लगाए बिना सब कुछ धुंधला धुंधला  सा लगता है  तब समझ आता है की काश उनकी बात मान ली होती तो आज बिना चश्मे का सहारा लिए बिना इस खूबसूरत दुनिया का आंनद ले पाता


खेर अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत , लेकिन अब समझ आ गया की बड़ो की बात मानने में ही सब की भलाई है ,और ईश्वर द्वारा इनायत की गयी हर एक चीज अनमोल है  भले ही विज्ञान कितनी ही तरक्की क्यू ना करले लेकिन ईश्वर की बराबरी नही कर सकता


खेर ये सब छोड़िये मुद्दे की बात पर आते है , हाँ तो कक्षा 9 में जब मुझे पढ़ने में परेशानी होने लगी, दूर की चीज़ को देखने में मुझे दिक्कत आने लगी, ब्लैक बोर्ड पर अध्यापक क्या लिख रहे है इस बात को जानने में, मैं असमर्थ होने लगा तब मुझे यकीन हो गया की अब मुझे चश्मे का सहारा लेना ही पड़ेगा  जिसके लिए मुझे किसी अच्छे आँखों के डॉक्टर के पास जाना होगा


जिस शहर में हम रहते है, वैसे वहाँ पर भी अच्छे चिकित्सक है , और तो और सरकारी अस्पताल भी है, लेकिन फिर भी  हमारा जिला रामपुर जो की हमारे शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर है, और वो शहर हमसे और हम उससे बहुत अच्छे से परिचित है  क्यूंकि हमारा नंसाल और दादी का घर सब वही है , और वो जिला होने के कारण वहाँ का सरकारी अस्पताल और उसमे बैठने वाले डॉक्टर भी हमारे शहर की तुलना में अच्छे और काबिल है 


इसलिए हमने वही अपनी आँखों का इलाज कराया , जो की बहुत अच्छा और मुनासिब दामों में हो गया  और वहाँ के चिकित्स्क ने हमारी आँखों का निरिक्षण कर बता दिया की अब चश्मा लगाना ही एक मात्र उपाय है  जो की एक हफ्ते बाद इस तारीख़ को आपको मिल जाएगा


कुछ दिन बाद हम अपने घर आ गए  और चिकित्सक द्वारा दी गयी तारीख़ का इंतज़ार करने लगे , आखिर कार वो दिन आ गया जब हमें सरकारी अस्पताल जाकर अपना चश्मा हासिल करना था 

मैं और मेरी अम्मी सुबह ही अपने बड़े भाई के साथ बाइक पर बैठ कर, नजदीक ही बने रेलवे प्लेटफॉर्म पर पहुंच गए

ना जाने क्यू वो दिन कुछ अजीब ही था, क्यूंकि रास्ते में हमारी अम्मी का पर्स गिर गया जिसमे मोबाइल था , किराये के पैसे हमारे पर्स में थे  जिस वजह से टिकट खरीदने में कोई परेशानी नही हुयी


हमारे बड़े भाई हमें छोड़ कर चले गए, मैं और अम्मी कुर्सी पर बैठ कर ट्रैन के आने का इंतज़ार करने लगे वो ट्रैन एक पैसेंजर ट्रैन थी जो की उत्तराखंड में पड़ने वाले काठगोदाम से चलकर  मुरादाबाद तक जाती थी 


थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद वो ट्रैन आ गयी , प्लेटफॉर्म यात्रियों से भरा हुआ था ट्रैन के रुकते ही लोगो ने उसमे चढ़ना शुरू कर दिया और जगह पाते ही उसमे बैठ गए, पैसेंजर ट्रैन में जगह मिलना थोड़ा मुश्किल ही होता है 


लेकिन फिर भी हमें खाली सीट मिल गयी और हम बैठ गए, मुझे ट्रैन का सफऱ बहुत अच्छा लगता है , और अगर खिड़की वाली सीट मिल जाए तो सोने पर सुहागा ही हो जाता है , हम लोग धीरे धीरे अपने शहर की और बढ़ रहे थे , ट्रैन कभी प्लेटफॉर्म पर रूकती तो कभी  किसी अन्य ट्रैन को रास्ता देने के लिए बीच में रुक जाती

करीब  12 बजे  सब लोग अपनी अपनी सीट पर बैठे सफऱ का आनंद ले रहे थे की अचानक एक ज़ोर का झटका, सबने महसूस किया और देखते ही देखते ट्रैन की रफ़्तार हल्की होते होते वो रुक गयी , चारों और जंगल ही जंगल था ,


सब को लगा की शायद किसी अन्य ट्रैन को रास्ता देने के लिए बीच में रुक गयी लेकिन थोड़ी देर बाद पता चला जो झटका अभी कुछ देर पहले सब यात्रियों ने महसूस किया वो कोई साधारण झटका नही था बल्कि हमारी वो ट्रैन एक हादसे का शिकार हो चुकी थी 


किसी की जल्दबाज़ी, सामने से ट्रैन आता देख भी अपनी गाड़ी को नही रोकना और जान बूझ कर अपनी गाड़ी को पटरी पर चढ़ा देना ताकि रास्ता पार कर सके शायद ये सब बाते ही उस गाड़ी का ड्राइवर सोच रहा होगा तब ही तो उसने सामने से आती ट्रैन देखकर भी अपनी जल्दबाजी नही छोड़ी और पटरी से गाड़ी पार करदी जिसका नतीजा उस ड्राइवर और उसमे बैठे  लोगो को अपनी जान गवाह कर देना पड़ा 


भले ही ट्रैन ने अपनी रफ्तर कम करने की कोशिश की होगी लेकिन फिर भी  कम होते होते भी ट्रैन गाड़ी से जा टकराई  और वो दर्दनाक हादसा अंजाम तक जा पंहुचा 

हम लोग तो सुरक्षित थे किन्तु जो लोग गाड़ी में बैठे थे  और अब ज़िंदा नही थे, उनके लिए बहुत अफ़सोस हो रहा था


ट्रैन पटरी  पर रुक गयी थी , वो आगे नही जा सकती थी , इसलिए सारे यात्रियों को उस ट्रैन से उतारना पड़ा  क्यूंकि ट्रैन भी शातिग्रस्त हो चुकी थी 


उसके बाद सब यात्री आगे का सफऱ पैदल तय करके हाईवे तक आये और अपने अपने सफऱ को आगे बढ़ाया

हमारा मोबाइल जो की गिर चूका था , और वो हमारे बड़े भाई को जाते समय मिल गया था क्यूंकि उसे एक दुकान वाले ने उठा कर अपने पास रख लिया था जो की हमारे भाई को जानता था और उन्हे लोटा दिया, अभी भी इंसानियत मरी नही है लोगो में जिसकी वजह से धरती अभी भी वजूद में है 


ट्रैन हादसे की खबर जंगल में आग की तरह फेल गयी थी , हमारे घर वाले भी चिंतित थे  लेकिन बाद में हमने किसी के मोबाइल से फ़ोन कर अपनी खैरियत की खबर दे दी जिसके बाद उन सबने राहत की सास ली


हम सब तो बच गए थे  उस हादसे से पर ना जाने किसके अपने उस हादसे का शिकार हो गए थे , सिवाय अफ़सोस के कुछ भी नही कर सकते


ज्यादा कुछ नही कहूँगा  बस इतना कहूँगा  की फिर मिलते है , अगली किसी याद के साथ  जब तक के लिए अलविदा


यादों के झरोके से 



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6 Comments

Gunjan Kamal

11-Dec-2022 02:11 PM

खुशियों के पलों को तो हम कुछ देर के लिए भूल भी जाते हैं लेकिन हमारे जीवन में घटित बातें हम सबकी याददाश्त से कभी भी निकलते नहीं है।

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Muskan khan

09-Dec-2022 06:33 PM

Superb

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Sachin dev

09-Dec-2022 06:10 PM

Very nice 👍

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